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राजुला और मालूशाही पारंपरिक कुमाऊँनी वेशभूषा में, हिमालय के पृष्ठभूमि के साथ उत्तराखंड की अमर प्रेम लोकगाथा का चित्रण। |
राजुला-मालूशाही: उत्तराखंड की अमर प्रेमगाथा
परिचय — एक प्रेम कथा जो समय से परे है
यह कथा न केवल साहित्यिक महत्व रखती है, बल्कि कुमाऊँ क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत का भी मूल स्तंभ मानी जाती है।
पृष्ठभूमि — उत्तराखंड की संस्कृति में लोकगाथाओं का स्थान
उत्तराखंड, विशेषकर कुमाऊँ क्षेत्र, अपनी लोककथाओं, जागरों और गीतों के लिए जाना जाता है। यहाँ की हर घाटी, हर मंदिर और हर मेले में किसी न किसी प्रेम कथा की गूंज होती है।
कत्युरी राजवंश और सामाजिक संरचना
राजुला-मालूशाही की कहानी 13वीं–14वीं सदी के कत्युरी राजवंश से जुड़ी मानी जाती है। इस समय उत्तराखंड में राजशाही और व्यापारिक समाज में गहरा अंतर था, जो इस गाथा के सामाजिक संघर्ष को पृष्ठभूमि प्रदान करता है।
"जब प्रेम जात-पात, सत्ता और सीमाओं से टकराता है, तो लोककथाएं जन्म लेती हैं।"
मुख्य कथा — प्रेम, संघर्ष और पुनर्जन्म की यात्रा
जन्म और वचन
राजा डोला शाह और शौका व्यापारी सुनपति शौका संतान की प्राप्ति हेतु बागनाथ मंदिर में भगवान शिव से प्रार्थना करते हैं। दोनों यह वचन देते हैं कि यदि एक को पुत्र और दूसरे को पुत्री होती है, तो उनका विवाह कर देंगे।
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राजा के घर जन्म होता है मालूशाही का।
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व्यापारी के घर जन्म लेती है राजुला।
शगुन विवाह और भविष्यवाणी
ज्योतिषियों की गणना के अनुसार, मालूशाही की अल्पायु तय होती है। उसका नौरंगी कन्या से विवाह उसे दीर्घायु बना सकता है। अतः जन्म के 5वें दिन ही दोनों का प्रतीकात्मक विवाह करवा दिया जाता है।
विछोह और राजनीति
राजा डोला शाह की मृत्यु के पश्चात दरबारियों द्वारा फैलाए गए झूठ के कारण राजुला को दरबार से दूर रखा जाता है। समय बीतता है और दोनों अलग-अलग जगहों पर बड़े होते हैं।
प्रेम की पुकार और संघर्ष की राह
राजुला, अब सुंदर और तेजस्विनी युवती बन चुकी होती है। हूण देश का राजा रिक्खीपाल राजुला से विवाह का प्रस्ताव भेजता है और मना करने पर शौका देश पर आक्रमण की धमकी देता है।
राजुला, प्रेम और स्वाभिमान की रक्षा हेतु अकेले ही बैराठ (मालूशाही का राज्य) की ओर निकल पड़ती है।
निद्रा जड़ी और वियोग
बैराठ में मालूशाही की माँ उसे निद्रा जड़ी सुंघा देती है, ताकि वह राजुला से न मिल सके। राजुला अपने प्रेमी को जगाने की हर कोशिश करती है, पर असफल रहती है।
वह एक पत्र और अंगूठी छोड़कर लौट जाती है।
जागरण, संकल्प और योगमार्ग
मालूशाही के जागने पर उसे सच्चाई का पता चलता है। वह गोरखनाथ के पास जाता है और तंत्र-मंत्र सीखकर जोगी का वेश धारण करता है।
विष और पुनर्जन्म
हूण देश में मिलने के बाद, रिक्खीपाल को मालूशाही पर शक होता है और वह उसे ज़हर दे देता है।
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कुछ कथाओं में मालूशाही की मौत हो जाती है, और राजुला संपूर्ण जीवन उसकी याद में तप करती है।
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अन्य संस्करणों में गोरखनाथ द्वारा पुनर्जीवन मिलता है और वे दोनों साथ लौटते हैं।
सांस्कृतिक महत्व और वर्तमान संदर्भ
रंगमंच और लोकगीतों में प्रस्तुति
“जहां प्रेम है, वहां यादें अमर होती हैं।”
मुख्य बिंदुओं का सारांश
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संदर्भ स्रोत
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Malushahi and Rajula: A Ballad from Kumaun – Konrad Meissner, 1985
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KumauniArchives.com पर मूल लोकगाथा:
FAQs
राजुला-मालूशाही किस समय की कथा है?
यह कथा कत्युरी राजवंश के काल (लगभग 13वीं सदी) से जुड़ी मानी जाती है।
क्या यह कहानी सच्ची है?
यह एक लोकगाथा है — इसके ऐतिहासिक प्रमाण सीमित हैं, पर सांस्कृतिक सच्चाई गहराई से जुड़ी है।
इस पर कौन-कौन से नाटक या पुस्तकें उपलब्ध हैं?
मोहान उप्रेती का नाटक, और Konrad Meissner की पुस्तक सबसे प्रमुख हैं।
"जहां वचन से बंधा प्रेम हो और साहस से सजा संघर्ष, वहीं जन्म लेती हैं अमर लोकगाथाएं।"