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हुड़का – उत्तराखंड की लोकसंस्कृति की धड़कन |
हुड़का की लोककथाएँ| उत्तराखंड की संस्कृति और परम्परा
Table of Contents
- परिचय
- हुड़का क्या है?
- हुड़के का निर्माण और लोककथा
- हुड़का से जुड़ी कहावत
- जागर और हुड़का
- खेतों की लोककथा: हुड़किया बौल
- गुरु-शिष्य परंपरा और हुड़का
- हुड़का की सांस्कृतिक पहचान
- हुड़का और समाज की एकजुटता
- आधुनिक समय में हुड़के की स्थिति
- निष्कर्ष
- प्रश्नोत्तर
परिचय
हुड़का क्या है?
- हुड़का एक छोटा, ढोल जैसा वाद्य है, जिसे दोनों हाथों से बजाया जाता है।
- इसका आकार अंडाकार होता है और दोनों ओर चमड़ी मढ़ी होती है।
- बजाने पर यह तीखी, ऊर्जावान और गूंजदार ध्वनि उत्पन्न करता है।
- पहाड़ों
में इसे विशेषकर देवी-देवताओं की आराधना, बुआई-कटाई और
लोकनृत्यों में प्रयोग किया जाता है।
हुड़के का निर्माण और लोककथा
उत्तराखंड की कहावत
है कि, सबसे अच्छा हुड़का खिन की लकड़ी से बनता है। इसकी दाईं पुड़ी बंदर की
खाल और बाईं पुड़ी लंगूर की खाल से तैयार की जाती है। एक कुमाऊंनी लोककथा में कहा
गया है कि ऐसे हुड़के की थाप सुनते ही इलाके के सभी 'डंगरिये'
(नर्तक) बिना बुलाए नाचने लगते थे।
यह
लोककथा बताती है कि हुड़के की गमक केवल संगीत नहीं, बल्कि सामूहिक चेतना
और सामाजिक उत्सव का प्रतीक है।
हुड़का से जुड़ी कहावत
कुमाऊंनी में कहा गया है:
"खिनौक हो हुड़क, देण पुड़ हो बानरौक,
बौं पुड़ हो लंगूरौक। जभत कै तौ हुड़क बाजौल, इलाकाक
डंगरी बिन न्यूतियै नाचण लागाल।"
अर्थात
जब खिन की लकड़ी का बना,
बंदर-लंगूर की खाल से मढ़ा हुड़का बजेगा, तो
इलाके के लोग बिना बुलाए ही नाच उठेंगे। यह अतिशयोक्ति जरूर है, पर इससे हुड़का की स्वर और सामाजिक महत्व का अंदाजा लगता है।
जागर और हुड़का
उत्तराखंड में देवी-देवताओं का जागर बिना हुड़का अधूरा है। जागर की रातों में जब हुड़का गूंजता है, तो माना जाता है कि, उसकी थाप में देवी देवता उतर आते हैं। हुड़का बजाने वाला 'जगरिया' विशेष मंत्रों और गीतों के साथ देवता का आह्वान करता है।
जागर केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामूहिक उपचार और सामाजिक एकता का माध्यम भी है, और हुड़का इसमें आत्मा का काम करता है।
खेतों की लोककथा: हुड़किया बौलधान
और मक्का की बुआई के समय गांवों में 'हुड़किया बौल' नृत्य किया जाता है। इसमें दो पंक्तियां बनाकर नर्तक खड़े होते हैं,
हुड़का वादक बीच में थाप देता है और गायक वीरता, संघर्ष और समाज की कथाएं गीतों में गाता है।
हुड़किया
बौल केवल मनोरंजन नहीं,
बल्कि खेतों की मेहनत, सामूहिकता और उत्सव का
प्रतीक है।
गुरु-शिष्य परंपरा और हुड़का
कहा जाता है कि, हुड़का बनाने और बजाने की कला पीढ़ियों से गुरु-शिष्य परंपरा में सौंपी जाती रही है। एक अच्छा वादक केवल धुन ही नहीं, बल्कि उसमें छिपी भक्ति, लोकस्मृति और समाज की ऊर्जा भी सिखाता है।
हुड़का बजाना और बौल गाना केवल कला नहीं, बल्कि एक परंपरा थी।- गुरु अपने शिष्य को न केवल थाप और ताल सिखाता, बल्कि गीतों का अर्थ और लोककथाएँ भी सुनाता।
- शिष्य अपने गुरु की सेवा करके यह विद्या सीखता था।
- यह परंपरा परिवारों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती थी।
इस तरह हुड़का केवल एक वाद्य नहीं, बल्कि ज्ञान और संस्कृति के हस्तांतरण का माध्यम था।
हुड़का की सांस्कृतिक पहचान
उत्तराखंड
में हुड़का केवल एक वाद्य नहीं, बल्कि सामाजिक पहचान है। गांव-समाज में
उत्सव हो या दुख का समय, हुड़के की थाप लोगों को जोड़ती है।
यह सामूहिकता, श्रद्धा और लोकगौरव का प्रतीक है।
हुड़का उत्तराखंड की पहचान का हिस्सा है।
- यह आस्था का वाद्य है, क्योंकि देवी देवताओं के जागर बिना इसके अधूरे हैं।
- यह लोकजीवन का साथी है, क्योंकि शादी-ब्याह और मेलों में इसकी गूँज होती है।
- यह इतिहास का वाहक है, क्योंकि बौल गायक वीरगाथाएँ इसी पर सुनाते थे।
हुड़का और समाज की एकजुटता
हुड़के
की थाप सुनते ही लोग इकट्ठा हो जाते हैं। यह केवल संगीत नहीं, बल्कि
एक सामाजिक संकेत है कि अब कोई सामूहिक घटना होने वाली है। यही कारण है कि हुड़का
गांवों की "धड़कन" कहा जाता है।
- सामूहिक लोकअनुष्ठान का केंद्र: जागर, शादी, त्योहार में समाज को एकत्र करता है।
- देव-आह्वान का माध्यम: सबको साझा आस्था और विश्वास से जोड़ता है।
- साझा संस्कृति का संरक्षण: लोककथाएँ और इतिहास पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुनाता है।
- गाँव की बैठकें और निर्णय : सामूहिक चर्चा और फैसलों में उपयोगी।
- भक्ति और ऊर्जा का संचार : हुड़के की थाप से सामूहिक नृत्य और गायन।
- संकट में एकता का प्रतीक : आपदा या संकट के समय लोगों को इकट्ठा करने का संकेत।
- सामाजिक पहचान का वाहक : पूरे समाज को उनकी परंपरा से जोड़ता है।
आधुनिक समय में हुड़के की स्थिति
आज
आधुनिक वाद्य और डीजे संस्कृति ने हुड़के की गूंज को कम कर दिया है, लेकिन
जागर और हुड़किया बौल में यह अब भी जीवित है। पहाड़ के कलाकार इसे नई पीढ़ी तक
पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।
आज के दौर में भी हुड़का लोकसंगीत का अहम हिस्सा है।
- कई सांस्कृतिक मंचों पर इसे बजाया जाता है।
- लोककलाकार इसे आधुनिक वाद्यों के साथ जोड़कर प्रस्तुत कर रहे हैं।
- उत्तराखंड की पहचान बताने वाले प्रतीकों में हुड़का विशेष स्थान रखता है।
निष्कर्ष
- इसके निर्माण की कहानियाँ और कहावतें,
- जागर में इसकी अलौकिक भूमिका,
- हुड़किया बौल की परंपरा,
- और गुरु-शिष्य परंपरा
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1: हुड़का किस लकड़ी से बनाया जाता है?उत्तर: सबसे अच्छा हुड़का खिन की लकड़ी से बनता है।
प्रश्न 2: हुड़का किन आयोजनों में बजाया जाता है?
उत्तर: जागर, हुड़किया बौल, पर्व और खेतों के उत्सवों में।
प्रश्न 3: हुड़के की खासियत क्या है?
उत्तर: इसकी थाप में सामूहिकता, श्रद्धा और उत्सव का भाव झलकता है।
पाठकों के लिए सुझाव
- गांवों के मेलों में जाकर हुड़का सुनें।
- जागर और हुड़किया बौल जैसे आयोजनों में शामिल हों।
- स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहित करें।