जोहार का पुराना इतिहास। तिब्बत से जुड़ी अनोखी गाथा

जोहार घाटी – तिब्बत से जुड़ी सदियों पुरानी कहानी का एक दृश्य 

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जोहार का पुराना इतिहास तिब्बत से जुड़ी अनोखी गाथा


Table of Contents

  • परिचय
  • जोहार की किंवदंतियाँ
  • तिब्बत से जुड़ाव
  • गमगिया कर समझौता
  • चंद राजाओं का शासन
  • गोरखा शासनकाल
  • अंग्रेज़ी शासनकाल
  • कालक्रम (Timeline)
  • सांस्कृतिक महत्व
  • निष्कर्ष
  • प्रश्नोत्तर

परिचय

हिमालय की गोद में बसी जोहार घाटी केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और व्यापार का संगम है। यह घाटी सदियों से तिब्बत के साथ व्यापारिक संबंधों, अनोखी लोककथाओं और बदलते शासनों की गवाह रही है। हल्दुवा-पिंगलुवा की किंवदंतियाँ हों या गमगिया कर समझौता, जोहार का हर पन्ना अनोखी घटनाओं से भरा है। यह आलेख आपको जोहार के अतीत की उस रोचक यात्रा पर ले चलेगा जहाँ तिब्बती लामाओं की पहल, चंद राजाओं का शासन, गोरखों की कठोर कर नीति और अंग्रेज़ी बदलाव – सब एक ही धारा में बहते हैं।

जोहार की किंवदंतियाँ

  • जोहार घाटी की पहचान केवल उसकी भौगोलिक सुंदरता तक सीमित नहीं है, बल्कि यहाँ पीढ़ियों से सुनाई जाने वाली लोककथाओं में भी बसी है। सबसे प्रसिद्ध कथा है हल्दुवा और पिंगलुवा की।
  • किंवदंती के अनुसार, सैकड़ों वर्ष पहले यह घाटी एक विशालकाय पक्षी के आतंक से खाली हो गई थी। यह पक्षी इतना ताकतवर था कि गाँव के लोग फसल बोने से डरते थे। तब हल्दुवा और पिंगलुवा नाम के दो वीर भाइयों ने मिलकर उसे मार गिराया, जिससे घाटी में फिर से जीवन लौटा।
  • यह कहानी न केवल साहस का प्रतीक है, बल्कि जोहार के लोगों की एकता और सामूहिक संघर्ष की परंपरा को भी दर्शाती है।

जोहार की प्राचीन लोककथाएँ – इतिहास का पहला पन्ना का छवि 

तिब्बत से जुड़ाव

  • जोहार घाटी का इतिहास तिब्बत के साथ गहरे जुड़ाव से भरा है। कहा जाता है कि शकिया लामा ने अपने एक शिष्य को जोहार में बसने के लिए भेजा। उसने यहाँ खेती-बाड़ी शुरू की और स्थानीय लोगों को स्थायी जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित किया।
  • बाद में सुनपति शौका और अन्य व्यापारी तिब्बत से ऊन, नमक और मसाले लाकर उन्हें कुमाऊँ के बाजारों में बेचते थे। यह व्यापार केवल आर्थिक लेन-देन तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें तिब्बती और कुमाऊँनी संस्कृति, भाषा, भोजन और रीति-रिवाजों का भी आदान-प्रदान होता था।

जोहार और तिब्बत का व्यापारिक संबंध का चित्रण 

गमगिया कर समझौता

  • मिलम गाँव के व्यापारी और तिब्बती अधिकारियों के बीच एक विशेष कर समझौता हुआ, जिसे ‘गमगिया’ कर कहा जाता था। इसके तहत दोनों पक्ष तयशुदा शुल्क लेकर व्यापार करते थे।

  • यह व्यवस्था केवल राजस्व के लिए नहीं थी, बल्कि एक विश्वास-आधारित प्रणाली थी, जिसने सीमावर्ती व्यापार को स्थिरता और सुरक्षा दी। इसके कारण जोहार घाटी न केवल आर्थिक रूप से समृद्ध हुई, बल्कि सांस्कृतिक साझेदारी भी गहरी होती गई।

चंद राजाओं का शासन

  • जोहार का नाम चंद वंश के इतिहास में भी सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। संवत 1594 में राजा बाजबहादुरचंद ने इस क्षेत्र का दौरा किया। बाद में 18वीं सदी में राजा दीपचंद और मोहनचंद के समय में यहाँ जागीर व्यवस्था लागू की गई।
  • इस व्यवस्था के तहत स्थानीय प्रमुखों को भूमि और अधिकार दिए गए, बदले में वे कर वसूली और कानून-व्यवस्था का ध्यान रखते थे।

गोरखा शासनकाल

  • 18वीं शताब्दी के अंत में गोरखाओं ने कुमाऊँ पर अधिकार किया। जोहार घाटी में उनकी कर नीति कड़ी और कठोर थी, जिससे व्यापारियों और किसानों पर बोझ बढ़ गया।
  • 1810 में स्थानीय नेता विजयरसिंह ने नेपाल दरबार में जाकर कर में कमी की मांग की, जो सफल हुई। यह घटना जोहार के लोगों के संगठन और राजनीतिक समझ का उदाहरण है।

अंग्रेज़ी शासनकाल

  • 1815 में अंग्रेज़ों ने कुमाऊँ पर अधिकार कर लिया। अंग्रेजी प्रशासन ने 1821 में जागीरों में कटौती कर, प्रत्यक्ष कर वसूली प्रणाली लागू की।
  • अंग्रेज़ों के समय में व्यापार मार्गों का पुनर्निर्माण हुआ, लेकिन तिब्बत के साथ राजनीतिक तनाव और सीमा-नीति में बदलाव ने धीरे-धीरे व्यापार को प्रभावित किया।


कालक्रम (Timeline)

वर्ष / संवत

घटना

संवत 1594

राजा बाजबहादुरचंद का दौरा

1735 ई.

राजा दीपचंद का शासन

1741 ई.

राजा मोहनचंद का शासन

1810 ई.

विजयरसिंह द्वारा कर में कमी

1815 ई.

अंग्रेज़ी अधिकार

1821 ई.

जागीर कटौती


सांस्कृतिक महत्व

  • जोहार घाटी केवल व्यापार का केंद्र नहीं रही, बल्कि यह तिब्बती और कुमाऊँनी संस्कृति के संगम का अद्वितीय उदाहरण है। यहाँ के लोकगीतों, त्योहारों और खानपान में दोनों संस्कृतियों की झलक मिलती है।
  • आज भी, यहाँ के मेलों और धार्मिक आयोजनों में उस सांस्कृतिक एकता की महक है, जो सदियों से चली आ रही है। 

निष्कर्ष

जोहार का अतीत केवल इतिहास की किताबों में कैद कहानी नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक धरोहर है, जो हमें सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सामूहिक जीवन की महत्ता सिखाता है।


प्रश्न उत्तर (FAQ)

Q1. जोहार घाटी कहाँ स्थित है?
उत्तर: यह उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित है।
Q2. ‘गमगिया’ कर क्या था?
उत्तर: तिब्बत और जोहार के व्यापारियों के बीच तय एक कर समझौता।


इतिहास का अध्ययन हमें अपनी जड़ों और सांस्कृतिक पहचान को समझने का अवसर देता है। जोहार की गाथा भी ऐसी ही एक धरोहर है।

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संदर्भ

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