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वीरता और नेतृत्व की प्रतीक |
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई: इतिहास की वह चिंगारी जो आज भी जल रही है
"ख़ूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसी वाली रानी थी।"
हर भारतीय के दिल में बसी यह पंक्ति सिर्फ एक कविता नहीं, बल्कि उस नारी शक्ति की गूंज है, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य को पहली बार भारत की धरती पर चुनौती दी। वह कोई और नहीं, रानी लक्ष्मीबाई थीं — एक माँ, एक योद्धा, और एक मिसाल।
एक साधारण बच्ची, असाधारण जज़्बा
19 नवम्बर 1828 को वाराणसी की गलियों में जन्मी मणिकर्णिका (प्यार से मनु) बचपन से ही असाधारण थीं। जहां लड़कियाँ गुड़ियों से खेलती थीं, वहां मनु ने तलवार को अपना साथी बना लिया। उन्होंने घुड़सवारी, तीरंदाज़ी, और युद्धकला में महारत हासिल की — एक लड़की के लिए उस समय यह क्रांतिकारी था।
झाँसी की रानी बनना – जिम्मेदारी की शुरुआत
1842 में उनका विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव से हुआ और वे बनीं – रानी लक्ष्मीबाई। लेकिन नियति ने उन्हें जल्दी ही परीक्षा के कटघरे में ला खड़ा किया। 1853 में राजा की मृत्यु हो गई, और अंग्रेजों ने उनकी झाँसी हड़पने की साजिश रच डाली।
पर रानी ने हार मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने साफ शब्दों में कहा:
"मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी!"
1857 की क्रांति – आग जो देशभर में फैली
अंत जो अमर हो गया
रानी लक्ष्मीबाई आज भी क्यों ज़रूरी हैं?
उनका जीवन एक संदेश है:
"अगर तुम सच्चे हो, तो तुम्हारी तलवार को कोई रोक नहीं सकता।"